अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय
अस्वीकरण :
इस वेबसाइट पर दी की गई जानकारी, प्रोडक्ट और सर्विसेज़ बिना किसी वारंटी या प्रतिनिधित्व, व्यक्त या निहित के "जैसा है" और "जैसा अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय उपलब्ध है" के आधार पर दी जाती हैं। Khatabook ब्लॉग विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रोडक्ट और सर्विसेज़ की शैक्षिक चर्चा के लिए हैं। Khatabook यह गारंटी नहीं देता है कि सर्विस आपकी आवश्यकताओं को पूरा करेगी, या यह निर्बाध, समय पर और सुरक्षित होगी, और यह कि त्रुटियां, यदि कोई हों, को ठीक किया जाएगा। यहां उपलब्ध सभी सामग्री और जानकारी केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए है। कोई भी कानूनी, वित्तीय या व्यावसायिक निर्णय लेने के लिए जानकारी पर भरोसा करने से पहले किसी पेशेवर से सलाह लें। इस जानकारी का सख्ती से अपने जोखिम पर उपयोग करें। वेबसाइट पर मौजूद किसी भी गलत, गलत या अधूरी जानकारी के लिए Khatabook जिम्मेदार नहीं होगा। यह सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों के बावजूद कि इस वेबसाइट पर निहित जानकारी अद्यतन और मान्य है, Khatabook किसी भी उद्देश्य के लिए वेबसाइट की जानकारी, प्रोडक्ट, सर्विसेज़ या संबंधित ग्राफिक्स की पूर्णता, विश्वसनीयता, सटीकता, संगतता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देता है।यदि वेबसाइट अस्थायी रूप से अनुपलब्ध है, तो Khatabook किसी भी तकनीकी समस्या या इसके नियंत्रण से परे क्षति और इस वेबसाइट तक आपके उपयोग या पहुंच के परिणामस्वरूप होने वाली किसी भी हानि या क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
We'd love to hear from you
We are always available to address the needs of our users.
+91-9606800800
अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय
असंतुष्ट कॉरपोरेट और बैंक प्रबंधकों ने देखा कि किस तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले पखवाड़े रुपये की कीमतों में तेज गिरावट के बावजूद इसे थामने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार रूपी अपने तरकश के सारे तीर इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही किसी केंद्रीय बैंक के सक्रिय हस्तक्षेप और अपेक्षाकृत संयत कदम में से कौन सा बेहतर है, यह बहस दोबारा चर्चा के केंद्र में आ गई। इस संबंध में कुछ स्पष्टीकरण भी हैं। आरबीआई ने टुकड़ों में हस्तक्षेप किया लेकिन अगर बाजार में फैली अफवाहों पर भरोसा किया जाए तो उन दिनों में आरबीआई ने 40-50 करोड़ डॉलर बेचे। अगर बैंक ऑफ कोरिया से तुलना की जाए तो दक्षिण कोरियाई मुद्रा वॉन के रुपये जैसे दबाव में आने पर उसने अफवाहों के मुताबिक तकरीबन 3 अरब डॉलर की रकम खर्च की थी।
अगर रुपये पर यह दबाव बना रहता है तो क्या आरबीआई को और अधिक आक्रामक ढंग से हस्तक्षेप करना चाहिए। खासतौर पर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उसके पास 300 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है? निष्पक्ष होकर बात की जाए तो आरबीआई ने जो अपेक्षाकृत अक्रिय रुख अपनाया, वह कई मौकों पर अपनाए गए उसके रुख के मुताबिक ही है। वह मुद्रा को एक व्यापक दायरे में कारोबार करने देता है। वह उसकी दो तरफा गति से इत्तेफाक रखता है और उसे एक खास विनिमय दर के दायरे में बांध कर नहीं रखना चाहता। उसका अंतर्निहित संदेश यही है कि कंपनियां, निर्यातक, आयातक और वे लोग जो विदेशी अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय मुद्रा में कर्ज लेते हैं, उन्हें अपने जोखिम की हेजिंग खुद करनी चाहिए और उन्हें अपने रिटर्न की गारंटी के लिए केंद्रीय बैंक की बाट नहीं जोहनी चाहिए।
क्या मौजूदा परिस्थितियों में आरबीआई के मुद्रा बाजार हस्तक्षेप से जुड़े कदमों को लेकर पुनर्विचार की गुंजाइश बनती है? इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं है कि मुद्रा कीमतों में तेज गिरावट ने उस अर्थव्यवस्था में और अस्थिरता पैदा की जो पहले से ही वैश्विक वातावरण में हलचल और घरेलू स्तर पर अनिश्चित वातावरण से जूझ रही अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय थी।
इसके अलावा मुद्रा का तेजी से होने वाला अवमूल्यन खुद ही एक ऐसा दुष्चक्र रचता है जिसमें पूंजी का बहिर्गमन होता है और इस तरह मुद्रा में और अधिक गिरावट आती है। अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की बात करें तो बीते पखवाड़े रुपये के मूल्य में आई गिरावट निश्चित तौर पर उनके लिए एक संकेत थी जिसकी वजह से उन्होंने भारतीय कंपनियों के शेयर बेचे और सुरक्षित ठिकानों की ओर कूच किया। अब बात आती है मुद्रास्फीति पर इसके असर की। मुद्रा अवमूल्यन को मुद्रास्फीति का कारक माना जाता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने से आयात महंगा होता है। ऐसे में पेट्रोल अथवा उर्वरक जैसे उत्पाद जिनकी कीमतों पर नियंत्रण है, उनमें अवमूल्यन अंडर रिकवरी के रूप में सामने आता है और आखिरकार यह सब्सिडी बोझ के रूप में नजर आता है। उदाहरण के लिए रुपये की कीमत में हर एक रुपये की गिरावट अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय का मतलब है तेल विपणन कंपनियों की अंडर रिकवरी में 9,000 करोड़ रुपये का इजाफा।
ये सारी बातें मिलकर रुपये की कीमत में और अधिक गिरावट की भूमिका तैयार कर सकती हैं। बहरहाल, यह मामला इतना आसान भी नहीं है। इस संबंध में शायद पहला सवाल यह उठना चाहिए कि रुपये का अवमूल्यन कारगर साबित होगा अथवा नहीं? पिछले पखवाड़े का उदाहरण लेते हैं। हो सकता है बैंक ऑफ कोरिया ने वॉन के बचाव में बहुत अधिक राशि खर्च की हो जबकि आरबीआई ने रुपये के लिए उतनी राशि खर्च नहीं की। लेकिन यह ध्यान में रखना होगा कि कोरियाई मुद्रा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और उसमें 9 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली जबकि इसकी तुलना में रुपये के मूल्य में 6.5 फीसदी तक की गिरावट आई।
इंडोनेशियाई केंद्रीय बैंक ने भी बहुत कम खर्च किया और वह खासा सफल भी रहा। हस्तक्षेप की सफलता की संभावना बहुत हद तक मुद्रा पर पडऩे वाले दबाव पर भी निर्भर करती है या फिर निवेशक की बाह्य अर्थव्यवस्था की बुनियाद को लेकर बनी धारणा आदि पर। ऐसे समय में जबकि किसी मुद्रा के प्रति बाजार का रुझान सुसुप्तावस्था में हो उस समय हस्तक्षेप करना बेहतर साबित नहीं होता। विदेशी मुद्रा भंडार को अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय इस्तेमाल करने की कीमत चुकानी होती है और केंद्रीय बैंक बाजार में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के पहले पूरा आकलन
करता है।
एक और बात यह कि 300 अरब डॉलर की संपत्ति हालांकि काफी अधिक प्रतीत होती है लेकिन अगर हम अपने बाह्य संतुलन को ध्यान में रखें तो यह शायद पर्याप्त प्रतीत न हो। मार्च 2011 के अंत में देश का बाह्य कर्ज 305 अरब डॉलर था और जून में यह बढ़कर 317 अरब डॉलर हो गया। ऐसे में हमारा बाह्य कर्ज कुल विदेशी मुद्रा भंडार अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय 312 अरब डॉलर से अधिक होने की आशंका है। चेतावनी भरा तथ्य यह है कि इस राशि में 43.3 फीसदी अल्पावधि की परिपक्वता वाली है, लगभग 137 अरब डॉलर की इस राशि को अगले 12 महीनों के दौरान चुकता करना होगा। इतना ही नहीं बीएसई-200 की कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण लगभग 950 अरब डॉलर का है। मान लीजिए कि इस राशि में 20 से 25 फीसदी हिस्सेदारी यानी 200 से 250 अरब की हिस्सेदारी विदेशी संस्थागत निवेशकों की है जो ज्यादा दबाव की स्थिति में घरेलू बाजार से किनारा कर सकते हैं। इसके अलावा ऋण के पुनर्भुगतान की प्रतिबद्घताएं भी हैं जिनके चलते 312 अरब डॉलर की राशि एक झटके में अपर्याप्त दिखने लगेगी। केंद्रीय बैंक अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय को इन सब स्थितियों की भी तैयारी रखनी होती है। इस तरह पूंजी प्रवाह में अचानक अवरोध आ सकता है। अगर ऐसा होता तो आरबीआई को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा मुद्रा बाजार में लगाना पड़ता। ऐसे में उसका विदेशी मुद्रा भंडार को सावधानीपूर्वक इस्तेमाल में लाना समझ में आता है।
इसके अलावा कुछ अन्य वैकल्पिक तरीके भी हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। मुद्रा का मूल्य बढऩे और घटने दोनों ही स्थितियों में इसका प्रबंधन किया जाना चाहिए। संक्षेप में कहा जाए आरबीआई को मुद्रा की कीमत बढऩे के दौरान अच्छा भंडार तैयार करना चाहिए ताकि विपरीत परिस्थितियों में उसका समुचित इस्तेमाल किया जा सके। एक अन्य तरीका है अधिक रणनीतिक हस्तक्षेप करना, एक खास स्तर पर रुपये की सुरक्षा करने का विचार बुरा नहीं है। यद्यपि जरूरी नहीं कि हस्तक्षेप हमेशा आरबीआई के लिए एक व्यावहारिक विकल्प हो लेकिन जब वह हस्तक्षेप का निर्णय लेता है तो वह यह काम बेहतर तरीके से करना सुनिश्चित कर सकता है।
लगातार सातवीं बार गिरावट के साथ सामने आए विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार के आंकड़े
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें लगातार गिरावट ही दर्ज की जा रही है। हालांकि, बीच में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में कुछ बढ़त दर्ज की गई थी। वहीं, एक बार फिर इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। उधर स्वर्ण भंडार में भी इस बार गिरावट दर्ज हुई है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से हुआ है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 22 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 3.271 अरब डॉलर घटकर 600.423 अरब डॉलर पर आ गिरा है। जबकि, इससे पहले 15 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 31.1 करोड़ डॉलर घटकर 603.694 अरब डॉलर पर आ गिरा था। वहीं, उससे पहले भी 8 अप्रैल 2022 को समाप्त सप्ताह में इसमें 2.471 करोड़ डॉलर की गिरावट ही देखने मिली थी और महीने की शुरुआत में यानी 1 अप्रैल, 2022 को समाप्त सप्ताह में 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पा आ गिरा है। जबकि, 25 मार्च 2022 को समाप्त सप्ताह में 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। बता दें, विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार सातवीं अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय बार गिरावट दर्ज हुई है।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 3.77 करोड डॉलर घटकर42.768 अरब डॉलर पर जा पहुंची हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में गिरावट ही दर्ज की गई थी। रिजर्व बैंक (RBI) ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार को समाप्त सप्ताह में FCA 2.835 अरब डॉलर घटकर 533.933 अरब डॉलर रह गया। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती हैं।
आंकड़ों के अनुसार IMF :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़कर होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) में देश का मुद्रा भंडार 1.6 करोड़ डॉलर घटकर 5.086 अरब डॉलर पर पहुंच गया। जबकि, IMF में देश का विशेष आहरण अधिकार (SDR) 3.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.662 अरब डॉलर पर आ पंहुचा है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है। इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
ताज़ा ख़बर पढ़ने के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। @rajexpresshindi के नाम से सर्च करें टेलीग्राम पर।
ऊहापोह और उत्साह की राजनीति
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा 2023 की चुनावी तैयारियां शुरू हो चुकी है। सत्तारूढ़ दल भाजपा में जहां अधिकांश भाजपाई गुजरात में पसीना बहा रहे हैं, वहीं प्रदेश के अधिकांश कांग्रेसी “भारत जोड़ो यात्रा” में दिन-रात एक कर रहे हैं। दोनों ही दलों के नेताओं का मकसद राष्ट्रीय नेतृत्व की नजरों में सकारात्मक छवि बनाने की है क्योंकि इसके बाद फाइनल प्लानिंग शुरू हो जाएगी।
दरअसल, राजनीति में अवसर का बड़ा महत्व होता है। जनता के बीच छवि बनाने के लिए मुसीबत के समय संघर्ष और पार्टी नेतृत्व के सामने छवि बनाने के लिए पार्टी के कार्यक्रमों में तन मन धन से सक्रिय रहना और इसी प्रकार की परिस्थितियां प्रदेश के दोनों दलों के नेताओं को उपलब्ध हो गई है। जिसको भुलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है क्योंकि क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए जहां गुजरात के विधानसभा के चुनाव नाक का सवाल है। वहीं कांग्रेस के लिए भारत जोड़ो यात्रा ही एक बड़ा सहारा है।
बहरहाल, गुजरात विधानसभा के चुनाव की प्रथम चरण के लिए गुरुवार को मतदान हो चुका है 89 सीटों पर हुए मतदान के बाद अब भाजपा नेता प्रदेश की ओर लौटने लगे हैं। जिसको भी जिम्मेदारी दी गई उसने बखूबी उसको निभाया क्योंकि पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार और देश के गृह मंत्री अमित शाह की निगाहें नेताओं के परफारमेंस पर लगी हुई है। लगभग एक दर्जन मंत्री गुजरात चुनाव में अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचार करते रहे संगठन के भी दर्जनों नेता गुजरात की गलियों में घूमते रहे माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश में मंत्रिमंडल में फेरबदल और विभिन्न निगम मंडलों में नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा अब प्रदेश में अंतिम पड़ाव पर है 5 दिसंबर को यह यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर जाएगी। 13 दिनों तक यात्रा के प्रदेश में रहने तक कोई भी कांग्रेसी यात्रा के इर्द-गिर्द ही दिखना चाह रहा है जितने भी कांग्रेस नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा की जिम्मेदारी दी गई। उन सभी ने तन मन धन से यात्रा को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कुल मिलाकर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट चुके दोनों ही प्रमुख दल भा जा पा और कांग्रेस के नेताओं के लिए अपना परफॉर्मेंस दिखाने का मौका मिल गया लेकिन इसके बावजूद भी दोनों ही दलों के नेताओ में कोई ऊहापोह की स्थिति में है तो कोई उत्साहित है आखिर परीक्षा देने के बाद परिणाम की बारी जो है।
Electric Vehicles: ईवी के शौकीनों के लिए बड़ी खबर, सस्ती होने वाली है इलेक्ट्रिक गाड़ियां
Electric Vehicles: बाजार में मौजूद इलेक्ट्रिक गाड़ियां इतनी महंगी आती हैं कि वह उसे खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक खुशखबरी है।
सस्ती होने वाली है इलेक्ट्रिक गाड़ियां: Photo- Social Media
Electric Vehicles: पेट्रोल-डीजल और सीएनजी की आसमान छूती कीमतों ने कार मालिकों के पसीने छुड़ा दिए हैं। सबसे अधिक प्रभावित मध्यम आय वर्ग के लोग हो रहे हैं। उन्होंने गाड़ियों का इस्तेमाल काफी कम कर दिया है। बाजार में अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय मौजूद इलेक्ट्रिक गाड़ियां (electric vehicles) इतनी महंगी आती हैं कि वह उसे खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक खुशखबरी है। केंद्र सरकार (Central government) इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों में बड़ी कटौती का प्लान बना रही है। सरकार की योजना इनकी कीमतों को पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के बराबर लाना है।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Union Road Transport Minister Nitin Gadkari) ने इसे लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंन कहा कि आने वाले समय में ईवी गाड़ियों की कीमत पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के बराबर कर दी जाएंगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह इसमें ज्यादा समय नहीं लगाना चाहते। उनकी कोशिश साल भर के अंदर ऐसा करने की है।
दरअसल, सरकार अधिकांश सक्रिय विदेशी मुद्रा समय को जीवाश्म ईंधन के आयात में बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा को खपाना पड़ता है। आयात बिल में इनका हिस्सा सबसे बड़ा होता है। इसलिए सरकार इसपर देश की निर्भरता कम करना चाहती है। जीवाश्व ईंधन के कम आयात से सरकार की आर्थिक सेहत के साथ देश के पर्यावरण की सेहत को भी बचाया जा सकेगा।
क्या है सरकार की योजना
इलेक्ट्रिक गाड़ियां के महंगे होने का कारण है, उसमें लगने वाली बैटरी। गाड़ी की कीमत का 35 से 40 प्रतिशत खर्च केवल बैटरी पर बैठता है। जिसके कारण ईवी गाड़ियां अन्य वाहनों के मुकाबले महंगी बिकती हैं। सरकार नई टेक्नोलॉजी और सब्सिडी के साथ इनकी कीमतों को नीचे लाने में जुटी हुई है। चार्जिंग की समस्या को सुलझाने के लिए देशभर में चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं। राहत की बात ये है कि महंगा होने के बावजूद लोगों का इसके प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। इलेक्ट्रिक गाड़ियां का बढ़ता बाजार इसकी गवाही है। इनकी बिक्री में 800 प्रतिशत की रिकॉर्ड ग्रोथ दर्ज की गई है।
जानें कब तक कम होंगी कीमतें
मीडिया रिपोर्ट्स में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हवाले से बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियां की कीमतों (electric car prices) में कमी लाने में 1 साल तक का वक्त लग जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक, 2023 के आखिरी और 2024 की शुरूआत तक ये हो सकेगा। सरकार की तरफ से फिलहाल कीमतों में कितने कटौती की जाएगी, इसकी जानकारी नहीं दी गई है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 620