विदेशी मुद्रा व्यापार के बारे में गलत धारणाओं
विदेशी मुद्रा एक रूले खेल हैं जहां कुछ लोगों बहुत जीत हे और दूसरे खोते है।.
विदेशी मुद्रा एक रूले नहीं है क्योंकि विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका मुद्रा मूल्य में उतार चढ़ाव के मूल में कुछ सिद्धांत होते हैं. सबसे पहले, मुद्रा की कीमत अपने देश के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर करता है।दूसरी बात, यह वरीयताओं और विदेशी मुद्रा खिलाड़ियों . की उम्मीदों से जुड़ा हुआ है. यह सभी प्रोग्नोसिस जोएक विषय है.उद्देश्य कारकों के बजाय भिन्न युक्तबाजार विश्लेषण करके साबित कर दिया है .
यह आमतौर पर जोखिम किसी भी व्यावसायिक गतिविधि का एक अंतर्निहित हिस्सा है कि आजकल स्वीकार कर लिया है. तुम हमेशा एक सौदा से योजना बनाई परिणाम नहीं ले सकता हैलेकिन यह व्यापार में शामिल होने के लिए विशेष रूप से जोखिम भरा है. जटिलता और बाजार के व्यवहार का अप्रत्याशित प्रकृति के कारण यह नुकसान भुगतना करने के लिए आसान है और वहाँ कभी नहीं है एक 100% विश्वास है कि परिणाम सकारात्मक होने जा रहा है।कई आधुनिक संचार प्रौद्योगिकियों और शक्तिशाली विश्लेषणात्मक सॉफ्टवेयर संकुल के लिए यह बहुत आसान पहुँच के बावजूद वित्तीय बाजार में काम से दूर रख रहे हैं.
यह भी अच्छी तरह से कभी अपरिहार्य है की योजना बनाई है और वास्तविक परिणाम के बीच विचलन कि व्यावसायिक गतिविधियों में से किसी में भाग लिया है, जो हर किसी के लिए जाना जाता है. आर्थिक या राजनीतिक परिवर्तन की तरह अप्रत्याशित है, लेकिन अभी भी बहुत प्रभावशाली कारकों के सभी प्रकार हैं, प्राकृतिक आपदाओं और कई और अधिक. इस प्रकार, यह माना जा सकता है कि जोखिम किसी भी गतिविधि का हिस्सा है. एकमात्र तरीका जोखिम से बचने के लिए कुछ नहीं करना है.
एक व्यापारी की जीत दूसरे की हानि है.
किसी भी तरह से विदेशी मुद्रा बाजार में सभी खिलाड़ियों कीमत में उतार चढ़ाव से लाभ बनाने के लिए मांग कर रहे हैं. ऐसे खिलाड़ी हैं जो विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका मुद्रा विनिमय आपरेशनों अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग कर रहे हैं(निर्यातकों, आयातकों, बड़े निवेशकों और अन्य). इन खिलाड़ियों के लिए अल्पकालिक परिवर्तन महत्वपूर्ण नहीं हैं।इस तरह के आपरेशनों के मुख्य ग्राहकों कंपनियों निर्यात और आयात कर रहे हैंविदेश में अपने उत्पादों की बिक्री, वे देश की मुद्रा प्राप्त करते हैं जहां बिक्री होती है. इस पैसे के उत्पादन में निवेश करने के लिए वे देश की मुद्रा की जरूरत है, जहां उत्पादन स्थित है. ऐसी कंपनियों के आदेशों के तहत बैंकों (या दलाल) रूपांतरणों को अंजाम। क्योंकि मुद्राओं एक अस्थायी बाजार दर पर आसानी से दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है, ऐसे संचालन खुद को लाभ का एक स्रोत बन सकते हैं. फिर भी, किसी भी वित्तीय बाजार संसाधनों के पुन: आबंटन की एक जगह है.
Foreign Exchange Reserves: दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, फिर से आई 3.84 बिलियन डॉलर की गिरावट
Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में फिर से 3.84 बिलियन डॉलर की गिरावट आई और यह दो सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया. रुपए को सपोर्ट करने के लिए रिजर्व बैंक इस साल अब तक 100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका है.
Foreign Exchange Reserves: देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट जारी है. 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में यह 3.847 बिलियन डॉलर घटकर 524.52 बिलियन डॉलर रह गया. यह दो सालों का निचला स्तर है. यह जुलाई 2020 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर है. इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 बिलियन डॉलर घटकर 528.37 बिलियन डॉलर रह गया था. पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होती देखी जा रही है. एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
फॉरन करेंसी असेट्स में 3.59 बिलियन डॉलर की गिरावट
देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि रुपए की गिरावट को थामने के लिए केन्द्रीय बैंक मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है. रिजर्व बैंक द्वारा शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली, विदेशीमुद्रा आस्तियां (FCA) 3.593 बिलियन डॉलर घटकर 465.075 बिलियन डॉलर रह गयीं.
गोल्ड रिजर्व में 24.7 करोड़ डॉलर की गिरावट
आंकड़ों के अनुसार देश का स्वर्ण भंडार मूल्य के संदर्भ में 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 बिलियन डॉलर रह गया. केंद्रीय बैंक ने कहा कि विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.44 बिलियन डॉलर हो गया है.
100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका RBI
इधर रुपए की वैल्यु लगातार घट रही है. डॉलर के मुकाबले रुपया 83 के स्तर को भी पार कर गया है. रुपए को संभालने के लिए रिजर्व बैंक इस साल अब तक 100 बिलियन डॉलर का रिजर्व बेच चुका विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका है. रुपए में इस साल अब तक 12 फीसदी की गिरावट आ चुकी है.
आज फिर रुपए में आई 14 पैसे की गिरावट
आज हफ्ते के आखिरी दिन यह 14 पैसे की गिरावट के साथ 82.47 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 48 पैसे की उछाल के साथ 82.33 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. शेयरखान बाइ बीएनपी परिबा में रिसर्च ऐनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा, ‘‘भारतीय रुपया एक सीमित दायरे में रहा. मजबूत डॉलर सूचकांक ने रुपए पर दबाव डाला लेकिन सकारात्मक घरेलू बाजारों और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी से रुपए को थोड़ा समर्थन मिला. विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी रुपए को निचले स्तर पर संभाला.’’
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है, रुपया कमजोर, डॉलर मजबूत क्यों हुआ?
भारतीय रुपया इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 7 फीसदी कमजोर हुआ है. न केवल रुपया बल्कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं. यूरो, डॉलर के मुकाबले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं और डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है?
पंकज कुमार
- नई दिल्ली,
- 19 जुलाई 2022,
- (अपडेटेड 19 जुलाई 2022, 1:46 PM IST)
- एक डॉलर की कीमत 80 रुपये हुई विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका
- डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ
मेरी पीढ़ी ने जबसे होश संभाला है तब से अख़बारों और टीवी पर यही हेडलाइन पढ़ी कि डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट. आज फिर हेडलाइन है रुपये में रिकॉर्ड गिरावट, एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार हुई. अक्सर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत को देश की प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा जाता है. लेकिन क्या यह सही है? आजादी के बाद भारत सरकार ने लंबे समय तक कोशिश की कि रुपये की कीमत को मजबूत रखा जा सके. लेकिन उन देशों का क्या जिन्होंने खुद अपनी करेंसी की कीमत घटाई? करेंसी की कीमत घटाने की वजह से उन देशों की आर्थिक हालत न केवल बेहतर हुई बल्कि दुनिया की चुनिंदा बेहतर अर्थव्यवस्थाओं में वो देश शामिल भी हुए.
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?
किसी भी देश की करेंसी की कीमत अर्थव्यवस्था के बेसिक सिद्धांत, डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी, जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी कीमत भी कम होगी. यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. सरकारें करेंसी के रेट को सीधे प्रभावित नहीं कर सकती हैं.
करेंसी की कीमत को तय करने का दूसरा एक तरीका भी है. जिसे Pegged Exchange Rate कहते हैं यानी फिक्स्ड विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका एक्सचेंज रेट. जिसमें एक देश की सरकार किसी दूसरे देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. यह आम तौर पर व्यापार बढ़ाने औैर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.
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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
किसी करेंसी की डिमांड कम और ज्यादा कैसे होती है?
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिवैल्यूऐशन और डिप्रीशीएशन क्या है?
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है?
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.
डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़ारों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.
अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं.
2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी
भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.
बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.
सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.
इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.
यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.
विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.
बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.
कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.
रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका जाना रुक सके.
विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.
इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.
लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.
बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी विदेशी मुद्रा के लिए आसान तरीका हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.
भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.
अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.
इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.
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