फ्यूचर्स मार्जिन के साथ इक्विटी ट्रेड करने का लाभ देते हैं। चाहें आप फ्यूचर्स खरीद रहे हों या बेच रहे हों, इसके साथ जुड़े जोखिम भी असीमित हैं। जहाँ ऑप्शन्स की बात आती हैं, खरीदार अपना नुकसान भुगतान किए गए प्रीमियम तक सीमित कर सकता है। क्योंकि ऑप्शन्स नॉन-लीनियर होते हैं, इसलिए वो जटिल ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कार्य-योजनाओं द्वारा ज्यादा नियंत्रित किए जा सकते हैं। जब आप फ्यूचर्स खरीदते या बेचते हैं तो आपको अग्रिम रूप से मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपको इनिशियल मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन जब आप ऑप्शन्स खरीदते हैं तो आपको केवल प्रीमियम मार्जिन का ही भुगतान करना पड़ता है। बस यही है!
Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते है मुनाफा
अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।
Futures Calendar Spread क्या है?
Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और बेचें जा सकते है। दोनों सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।
वायदा और विकल्प के बीच अंतर
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भारत में ईक्विटीज़ से बड़ा मार्केट है ईक्विटी डेरिवेटिव मार्केट भारत में डेरिवेटिव्स में मुख्य रूप से दो प्रोडक्ट्स हैं – ऑप्शन्स औऱ फ्यूचर्स फ्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर है कि फ्यूचर्स लीनियर हैं जब कि ऑफ्शन्स नॉन-लीनियर हैं। डेरिवेटिव्स का अर्थ है कि इनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है लेकिन उनकी वैल्यू अंडरलाइंग ऐसेट से व्युपत्रित होती है। उदाहरण के लिए, रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ पर ऑप्शन्स और फ्यूचर्स रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ के स्टॉक के दाम पर निर्भर है और उन्हीं से उनकी वैल्यू निर्दिष्ट होती है। ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग भारतीय ईक्विटी मार्केट के महत्वपूर्ण भाग हैं। आइए हम ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के बीच अंतर को समझें और जानें कि किस प्रकार इक्विटी फ्यूचर्स और ऑप्शन्स मार्केट समग्र इक्विटी मार्केट के अभिन्न अंग हैं।
फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या हैं?
Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते है मुनाफा
अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।
Futures Calendar Spread क्या है?
Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? बेचें जा सकते है। दोनों सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।
निवेश से जुड़े जोखिम को समझिए क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? इन 9 आसान टिप्स के जरिए
हाल में आयोजित ET Wealth Investment Workshop में मणिकरण शिरकत करने पहुंचे थे. उन्होंने अलग-अलग तरह के निवेश इंस्ट्रूमेंट से जुड़े जोखिमों के बारे बताया. साथ ही इनसे निपटने के तरीके भी सुझाए.
1. मार्केट रिस्क : यह जोखिम शेयर बाजार की अस्थिरता से जुड़ा है. इसमें आपके निवेश के मूल्य को खतरा होता है. मणिकरण कहते हैं, "इस तरह के जोखिम से निपटने का सबसे आसान तरीका डायवर्सिफिकेशन है. अपनी जरूरत के अनुसार इक्विटी, डेट, गोल्ड, रियल एस्टेट जैसे अलग-अलग एसेट क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? क्लास में अपने निवेश को डायवर्सिफाई किया जा सकता है."
2. इंफ्लेशन रिस्क : इंफ्लेशन यानी महंगाई को मणिकरण धीमा जहर करार देते हैं. महंगाई आपके रिटर्न को चट कर जाती है. महंगाई क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? को मात देने के लिए जीवन के किसी भी पड़ाव में आप इक्विटी से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं.
Best Age क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? For Invest: किस उम्र में कितनी सेविंग? 35 साल के बाद बदल जाता है फॉर्मूला, ये है गणित.
अमित कुमार दुबे
- नई दिल्ली,
- 07 दिसंबर 2022,
- (अपडेटेड 07 दिसंबर 2022, 2:47 PM IST)
आज की तारीख में कोई 40 की उम्र में रिटायर (Retired) होना चाहता है तो कोई 50 में, कोई 60 की उम्र तक नौकरी का ख्याल मन में लेकर चलता है. लेकिन इन सबके बीच अधिकतर लोगों ऐसे होते हैं, जो रिटायरमेंट को लेकर समय रहते गंभीर नहीं होते क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? हैं, और फिर बाद में पछताते हैं. रिटायरमेंट ही नहीं, अपने फ्यूचर प्लान को लेकर ऐसे लोग लापरवाह होते हैं. अच्छी कमाई के बावजूद एक रुपये नहीं बचा पाते हैं. क्योंकि वे सेविंग को गंभीरता से नहीं लेते हैं.
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उदाहरण के तौर पर 25 साल का युवा हर महीने केवल 2000 रुपये का SIP करता है, और यह सिलसिला 60 की उम्र तक जारी रहता है तो फिर उसके पास 1 करोड़ 35 लाख रुपये जमा हो जाएंगे. यह आकलन 12 फीसदी ब्याज पर आधारित है. जबकि इससे भी ज्यादा पैसे बनाए जा सकते हैं.
इसलिए 25 से 35 साल की उम्र वालों के लिए रिटायरमेंट पर 2 करोड़ रुपये पाने के लिए रास्ता बेहद आसान होता है. 35 साल वाले को हर महीने केवल 10 हजार के निवेश पर 2 करोड़ रुपये मिल सकता है. जबकि 25 साल वाले तो केवल 3 हजार महीने की SIP पर 60 क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? साल के बाद 2 करोड़ रुपये जुटा लेंगे. कल्पना कीजिए अगर क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं? कोई 25 साल की उम्र से ही हर महीने 10 हजार रुपये की SIP शुरू कर दे तो 60 की उम्र में करीब 5 करोड़ रुपये जुटा लेंगे. क्योंकि 25 साल के युवा को 35 साल तक निवेश का मौका मिल जाएगा, चक्रवृद्धि ब्याज की वजह से 35 साल में बड़ा फंड हासिल हो जाएगा.
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